Tuesday, February 5, 2019

मोदी से आर-पार की जंग के लिए ममता कितनी तैयार? - नज़रिया

इसमें कोई शक नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ धरने पर बैठने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक क़द में बढ़ोतरी हुई है.

ममता बनर्जी लोकसभा चुनावों के लिए बनाई अपनी रणनीति के तहत धीरे-धीरे क़दम बढ़ा रही हैं ताकि वह नरेंद्र मोदी को पटखनी देकर प्रधानमंत्री पद पर बैठ सकें.

शारदा चिटफ़ंड घोटाले के मामले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से सीबीआई की पूछताछ के ख़िलाफ़ धरने पर बैठना भी राष्ट्रीय राजनीति में आने की ओर उठाया गया एक क़दम है.

सीबीआई ने राजीव कुमार पर शारदा चिटफ़ंड मामले में सुबूतों को नष्ट करने का आरोप लगाया है.

इस मामले में ममता बनर्जी इसप्लानाडे इलाक़े के मेट्रो चैनल पर धरने पर बैठी. यह वही जगह है जहां पर साल 2006 में उन्होंने सिंगूर में टाटा मोटर्स की फैक्ट्री के लिए खेती की ज़मीन के अधिग्रहण के ख़िलाफ़ धरना दिया था

हालांकि, इस समय विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के लिए कई उम्मीदवार हैं. लेकिन अभी तक विपक्षी दलों में किसी एक चेहरे के लिए आम सहमति नहीं बनी है.

लेकिन ममता बनर्जी ने अपनी जगह राहुल गांधी और शरद पवार जैसे उम्मीदवारों के साथ पहली पंक्ति में बना ली है.

अगर ममता बनर्जी अपने इस वर्तमान संघर्ष में मोदी को हरा देती हैं तो वह निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल कर लेंगी.

विपक्षी दलों का समर्थन
ममता बनर्जी ने अपनी इस लड़ाई में विपक्षी दलों का समर्थन हासिल किया है.

लेकिन ये ममता बनर्जी की एक ख़ास छवि की वजह से हुआ है जो उन्होंने बीते कई सालों में बनाई है.

इसके साथ ही क्षेत्रीय नेताओं में एक तरह का डर है कि अगर ममता के साथ कुछ होता है तो भविष्य में वही उनके साथ भी हो सकता है.

इस बात की भी संभावना है कि क्षेत्रीय दल राहुल गांधी की अपेक्षा ममता बनर्जी के साथ ज़्यादा सहज हैं.

इसी के चलते पूर्व प्रधानमंत्री देवेगैड़ा से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और अन्य क्षेत्रीय नेता जैसे चंद्रबाबू नायडु लोकतंत्र बचाने की अपील पर उनके समर्थन में आकर खड़े हो जाते हैं.

ममता बनर्जी इसी समय बेहद चालाकी से इस राजनीतिक अवसर का फ़ायदा उठाकर ख़ुद को लाइमलाइट में ले आती हैं.

ये देखना अपने आप में रोचक है कि रविवार की रात धरने का ऐलान करने के बाद कितनी तेज़ी से उनकी पार्टी उनके समर्थन में खड़ी हो गई.

उनकी पार्टी के कार्यकर्ता कुछ ही मिनटों में धरनास्थल पर पहुंच गए और आम आदमी पार्टी से लेकर राहुल गांधी ने तेज़ी से उनका समर्थन करने की घोषणा करते हुए उनके साथ बातचीत कर ली.

इस पूरी प्रक्रिया में सबसे पहली बात ये ही हुई कि ममता बनर्जी ने अपना राजनीतिक माद्दा दिखाते हुए 19 जनवरी को लगभग सभी विपक्षी दलों को कोलकाता में अपनी रैली में शामिल कर लिया.

कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड की रैली में 23 पार्टियों के नेताओं ने जब एक साथ हाथ उठाए तो बीजेपी के लिए ये काफ़ी असहज करने वाला संकेत था.

इस रैली का संदेश ये था कि ममता बनर्जी अपने मतदाताओं की नज़र में खुद को एक बड़ी राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करना चाहती हैं.

हालांकि, इसका व्यापक संदेश पूरे देश के लिए था कि विपक्षी नेता उनके नेतृत्व तले खड़े होने के लिए तैयार हैं.

ऐसे में उम्मीद ये है कि जब विपक्षी नेता अपना नेता चुनने के लिए प्रक्रिया शुरू करें तो दीदी किसी तरह की प्रतिस्पर्धा नहीं चाहती हैं.

साल 2014 से ममता बनर्जी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अपना मोर्चा खोले हुए हैं. इसमें गोहत्या से लेकर गोमांस पर प्रतिबंध, जीएसटी, नोटबंदी और कई अन्य विवादास्पद मुद्दे शामिल हैं.

ममता ने अपनी छवि एक ऐसे विद्रोही नेता के रूप में बनाई है जो कि देश के लिए संघर्ष कर सकती हैं.

ऐसे में एक ऐसी महिला की छवि, जो कि शक्ति के प्रति आसक्त नहीं है, इन सबने ममता बनर्जी की काफ़ी मदद की है.

इसके साथ ही उन्होंने युवाओं को लुभाने में सफलता हासिल की है, और युवा शक्ति ही राजनीति में ममता बनर्जी की मदद करती है.

ममता की रणनीति समझने के लिए उनके चार दशक लंबे राजनीतिक करियर के पीछे उनकी सोच को समझना ज़रूरी है.

सात बार की लोकसभा सदस्य ममता बनर्जी दिल्ली की राजनीति के लिहाज़ से नौसिखिया नहीं हैं.

वह अब तक तीन बार केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं और उनके पास राष्ट्रीय अनुभव भी है.

80 के दशक की शुरुआत में ही ममता बनर्जी ने समझ लिया था कि पश्चिम बंगाल में उनका मुख्य विरोधी दल सीपीआई-एम है. और, उन्होंने तब से ही साम्यवाद के ख़िलाफ़ अपना मोर्चा खोला हुआ है.

नंदीग्राम से लेकर सिंगूर धरना करते हुए उनका मुख्य उद्देश्य कॉमरेड्स को सत्ता से बाहर करना था.

वह संघर्ष की राजनीति करने वाली नेता हैं और सड़क की राजनीति में माहिर मानी जाती हैं.

इसी एकाग्रता के चलते ममता बनर्जी ने साल 2011 में 33 सालों से सत्ता पर विराजमान सीपीआई-एम को सत्ता से बाहर कर दिया.

Monday, February 4, 2019

中美贸易战:特朗普将晤习近平 发出“乐观”信号

为期两天的中美高级别贸易磋商结束之际,美国总统特朗普说谈判取得重大进展,并期待与中国领导人习近平二月份见面。

在媒体聚焦中,特朗普在白宫会晤了参加美中贸易谈判的中方代表。中方领队副总理刘鹤向美国总统转交了习近平的亲笔信。

特朗普随后表示,"这是一封美好的信。"

中美双方均宣称取得了进展,但双方官员也表示还需要经过艰难的谈判,才能避免3月初中美贸易休战协议到期后再爆发贸易冲突。

大豆与协议
虽然由刘鹤与美国贸易谈判代表莱特希泽进行的这一轮中美高级别贸易没有达成具体协议,但美国白宫表示,刘鹤表示中国承诺额外购买美国500万吨大豆。

美国大豆产量占全球产量近三分之一。中国一直是大豆进口大国。中美爆发贸易冲突后,中国暂停进口美国大豆等农产品,以报复美国对中国其它产品设置的贸易壁垒。

在2018年底中美贸易战暂时停火后,中国随即立即进口了113万吨的美国农产品。

如果中美双方无法在3月1日贸易休战协议到期前无法达成协议,美国将对价值二千亿美元的中国产品征收高关税。

中美双方和国际压力
除了贸易战的压力,中国经济增速放缓到过去几十年来前所未有的境地。企业倒闭,债务,金融,投资等方面都面临严峻局面。

在美国方面,中美贸易战也打击了美国涉及中美贸易领域的商业,特别是农产品,汽车等产品出口。

《纽约时报》分析认为,特朗普还面临达成协议的政治压力。但如果特朗普达成中国增加进口美国产品但不要求中国大幅开放市场的协议,可能会面临两党批评。

美国希望中国承诺对美国产品与服务开放市场,并同意作出结构性经济改革,并改善美国在华公司的商业环境。

Friday, February 1, 2019

डिफेंस सेक्‍टर के लिए ऐतिहासिक ऐलान, बजट 3 लाख करोड़ के पार

पाकिस्‍तान और चीन के साथ तनाव भरे हालात के बीच मोदी सरकार ने अपने अंतरिम बजट में डिफेंस सेक्‍टर पर फोकस किया है. इस बजट में सरकार की ओर से डिफेंस सेक्‍टर के लिए 3 लाख करोड़ रुपये के बजट का आवंटन किया गया है. पहली बार है जब डिफेंस सेक्‍टर के लिए आवंटन 3 लाख करोड़ रुपये है. हालांकि 2018 के बजट से तुलना करें तो डिफेंस सेक्‍टर के बजट में मामूली बढ़त है.

शुक्रवार को अंतरिम बजट पेश करते हुए कार्यवाहक वित्‍त मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि हमारे सैनिक कठिन हालात में देश की रक्षा करते हैं. सरकार सैनिकों के हित का ध्‍यान रखती है. उन्‍होंने बताया कि वन रैंक, वन पेंशन के तहत सरकार ने रिटायर्ड सैनिकों को 35 हजार करोड़ रुपये दिए हैं. सैनिकों की यह मांग 40 साल से लंबित पड़ी थी.

2018 में डिफेंस सेक्‍टर के लिए क्‍या था

चीन और पाकिस्‍तान के साथ तनाव भरे माहौल के बीच डिफेंस सेक्‍टर के लिए साल 2018 के आम बजट में वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने 2,95,511 करोड़ रुपये का आवंटन किया था. इस हिसाब से अंतरिम बजट में मोदी सरकार ने देश के रक्षा बजट में 5000 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की है. वहीं साल 2017 में डिफेंस सेक्‍टर के लिए 2.74 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था. इस हिसाब से डिफेंस बजट में 7.81 फीसदी का इजाफा था.  बीते साल के बजट में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्योग अनुकूल ‘रक्षा उत्पादन नीति 2018’ का ऐलान किया गया. इसके अलावा रक्षा उत्पादन क्षेत्र में एफडीआई को उदार बनाने के साथ साथ प्राइवेट इनवेस्टमेंट के दरवाजे खोल दिए गए.

सेना को अधिक बजट की दरकार

डिफेंस सेक्‍टर के एक्‍सपर्ट की नजर में पिछले बजट में रक्षा क्षेत्र की बढ़ोतरी मामूली थी. सेना ने भी यह दावा किया था कि उसके पास पर्याप्त फंड नहीं है.  यही वजह है कि 'मेक इन इंडिया' के तहत सेना के 25 प्रोजेक्ट भी आगे नहीं बढ़ सके. बता दें कि पाकिस्‍तान और चीन के साथ भारत के रिश्‍ते तनाव भरे रहे हैं. ऐसे में रक्षा बजट में इजाफे की दरकार थी.

अब भी चीन से पीछे

हालांकि चीन के मुकाबले अब भी भारत का रक्षा बजट तीन गुना कम है. रक्षा मामलों की संसदीय समिति ने भी बीते दिनों रक्षा क्षेत्र का बजट जीडीपी के मौजूदा 1.56 फीसदी से बढ़ाकर 3 प्रतिशत तक करने की सिफारिश की थी.  बता दें कि अमेरिका अपनी जीडीपी का 4 फीसदी, रूस 4.5, इजराइल 5.2, चीन 2.5 और पाकिस्तान 3.5 फीसदी रक्षा बजट के लिए आवंटित करता है.

आर्थिक रूप से पिछले सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण के बाद अब आयकर छूट की सीमा में बड़ा इजाफा कर लोकसभा चुनाव 2019 से पहले मोदी सरकार ने आम आदमी को लुभाने के लिए बड़ा दांव चल दिया है. चुनावी साल में आने वाले वक्त में सरकार को इसका फायदा मिल सकता है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने साल 2019-20 का अंतरिम बजट पेश करते हुए उक्त बातें कहीं. उन्होंने कहा, 'हमने पॉलिसी पैरालिसिस के दौर को पलट दिया है और सरकार की छवि को बेहतर किया. भारत फिर से मजबूत पटरी पर आ गया है. मैं अब भरोसे के साथ कह सकता हूं कि भारत अब मजबूती से पटरी पर है और तरक्की और समृद्धि की ओर बढ़ रहा है.'