Tuesday, January 8, 2019

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच करेगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच अयोध्या विवाद पर सुनवाई करेगी। मामले में 10 जनवरी को सुनवाई होनी है। चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रामाना, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस डीवाई चंद्रचूर्ण इस बेंच में शामिल होंगे।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने चार जनवरी को इस मामले की सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई की तारीख महज 30 सेकंड में दोनों पक्षों की दलीलें सुने बगैर आगे बढ़ा दी। दो जजों की इस बेंच को जल्द सुनवाई करने और केस नई बेंच के पास भेजने का फैसला करना था।

तीन सदस्यों की बेंच कर रही थी सुनवाई
इस मामले में पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच सुनवाई कर रही थी। नई बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई करेगी। दो सदस्यीय बेंच के सामने वकील हरिनाथ राम ने नवंबर में जनहित याचिका लगाकर जल्द से जल्द और हर दिन सुनवाई करने की मांग की थी।

लोकसभा चुनाव की वजह से मंदिर पर राजनीति गरमाई
लोकसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से राम मंदिर मुद्दे पर राजनीति भी गरमा रही है। केंद्र में एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि अगर 2019 चुनाव से पहले मंदिर नहीं बनता तो यह जनता से धोखा होगा। इसके लिए भाजपा और आरएसएस को माफी मांगनी पड़ेगी। उधर, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अध्यादेश लाने का विरोध करते हुए कहा कि सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही मानना चाहिए। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि न्यायिक प्रकिया पूरी हो जाने के बाद एक सरकार के तौर पर जो भी हमारी जिम्मेदारी होगी हम उसे पूरा करने के लिए सभी प्रयास करेंगे।

क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस पिछले आठ साल से है।

राहुल ने कहा- हमारा पहला मकसद नरेंद्र मोदी को हराना है। जिन राज्यों में हम मजबूत हैं या हम पहले नंबर पर हैं, वहां भाजपा के खिलाफ अकेले चुनाव लड़ेंगे। महाराष्ट्र, झारखंड, तमिलनाडु, बिहार में गठबंधन की संभावनाएं हैं। यहां गठबंधन का फॉर्मूला तैयार करने पर काम चल रहा है। मोदी को हराने के लिए हम अन्य राज्यों में गठबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं।

सपा-बसपा कांग्रेस के साथ के पक्ष में नहीं

राहुल का बयान उस वक्त आया, जब देश के सबसे बड़े राज्य उप्र में सपा-बसपा ने एकसाथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायवती कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं हैं। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों पार्टियां कांग्रेस के लिए सिर्फ दो सीटें रायबरेली और अमेठी छोड़ सकती हैं, जहां से सोनिया गांधी और राहुल गांधी सांसद हैं।

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